सवेरा सा पसरे है चारो तरफ़
ज़िन्दगी आज कुछ नयी सी रंग है
तू छेड़े सी मुझको है किरणों से अपनी
जागी सी तुझमे कैसी उमंग है
मैं देखूँ जिधर भी नयी सी लगे तू
तू रंगो में गीली सौंधी मलंग है
ले चल तू अपने मुझे साथ लेके,
मैं जी लूँ घड़ी भर तेरी पतंग है ।।
तेरे संग चलने का जी यूँ करे,
मैं जीने को तरसा हूँ कबसे परे
तू आशा की आहें जो मुझमे भरे,
मैं जी जाऊँ तुझमे कहीं बाँवरे
मेरी मस्तियाँ मुझसे रूठी हैं कबसे
उसे आज देजा तो जीलूँ मैं फिरसे
तू भरदे मुझे आज ख़ाली हूँ कबसे
जीवन के कोंपल पनप जाये मुझसे
आजा तू जीवन में मेरी कमी है
मैं उत्सुक हूँ तुझमें कैसी तरंग है
ले चल तू अपने मुझे साथ लेके,
मैं जी लूँ घड़ी भर तेरी पतंग है ।।
भटकते हुए अब तो अरसा हुआ है
ना राहें मिली हिय ये तरसा हुआ है
गहरा हुआ है ये परछाईयों में
तेरे आगमन से ये हर्षा हुआ है
उम्मीद में तेरी जा ये फंसा है
तेरी बातों से इसकी ऐसी दशा है
तू इसको दिखाये जो सपनो के बादल
तो बारिश को पाने तेरे संग चला है
अकेला मैं भीगूँ जो तू साथ ना हो
जीवन के मेरे सब अनोखे ढंग हैं
ले चल तू अपने मुझे साथ लेके,
मैं जी लूँ घड़ी भर तेरी पतंग है ।।
तुझे सब पता है मेरी जो दशा है
तू गुमसुम है फिर भी ना बोले कभी
तू कहने को हमराही संग चल रही है
ऐ जीवन ! तेरी ये अदाएँ सभी
बता दे तू मुझको कहाँ ले चलेगी
जीने को तुझ संग मैं चल लूँ अभी
तेरे आसरे पे मैं ठहरा हूँ कबसे
तुझसे ही उम्मीद मेरे सभी
अकेले सफ़र मुझसे काटा ना जाये
जो तू राह में है तो सब रंग है
ले चल तू अपने मुझे साथ लेके,
मैं जी लूँ घड़ी भर तेरी पतंग है ।।
तेरे साथ बीते पलों को संजोये
तेरी राहें ढुँढू मैं गलियों में खोये
ना जाने की किस छोर पे तू मिलेगी
हर छोर पे इक जनम मैंने खोये
ऐ जीवन ! ये कब तक सज़ा मेरी होगी
चलूँ साथ मैं कब रज़ा तेरी होगी
इस छोर की भी कहानी ख़तम है
तेरे आश्रय से विदाई कब होगी
प्रतीक्षा करूँ मैं तेरे आगमन की
दिखाये जो तूने स्वप्न - आनंद है
ले चल तू अपने मुझे साथ लेके,
मैं जी लूँ घड़ी भर तेरी पतंग है ।।
-द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
ज़िन्दगी आज कुछ नयी सी रंग है
तू छेड़े सी मुझको है किरणों से अपनी
जागी सी तुझमे कैसी उमंग है
मैं देखूँ जिधर भी नयी सी लगे तू
तू रंगो में गीली सौंधी मलंग है
ले चल तू अपने मुझे साथ लेके,
मैं जी लूँ घड़ी भर तेरी पतंग है ।।
तेरे संग चलने का जी यूँ करे,
मैं जीने को तरसा हूँ कबसे परे
तू आशा की आहें जो मुझमे भरे,
मैं जी जाऊँ तुझमे कहीं बाँवरे
मेरी मस्तियाँ मुझसे रूठी हैं कबसे
उसे आज देजा तो जीलूँ मैं फिरसे
तू भरदे मुझे आज ख़ाली हूँ कबसे
जीवन के कोंपल पनप जाये मुझसे
आजा तू जीवन में मेरी कमी है
मैं उत्सुक हूँ तुझमें कैसी तरंग है
ले चल तू अपने मुझे साथ लेके,
मैं जी लूँ घड़ी भर तेरी पतंग है ।।
भटकते हुए अब तो अरसा हुआ है
ना राहें मिली हिय ये तरसा हुआ है
गहरा हुआ है ये परछाईयों में
तेरे आगमन से ये हर्षा हुआ है
उम्मीद में तेरी जा ये फंसा है
तेरी बातों से इसकी ऐसी दशा है
तू इसको दिखाये जो सपनो के बादल
तो बारिश को पाने तेरे संग चला है
अकेला मैं भीगूँ जो तू साथ ना हो
जीवन के मेरे सब अनोखे ढंग हैं
ले चल तू अपने मुझे साथ लेके,
मैं जी लूँ घड़ी भर तेरी पतंग है ।।
तुझे सब पता है मेरी जो दशा है
तू गुमसुम है फिर भी ना बोले कभी
तू कहने को हमराही संग चल रही है
ऐ जीवन ! तेरी ये अदाएँ सभी
बता दे तू मुझको कहाँ ले चलेगी
जीने को तुझ संग मैं चल लूँ अभी
तेरे आसरे पे मैं ठहरा हूँ कबसे
तुझसे ही उम्मीद मेरे सभी
अकेले सफ़र मुझसे काटा ना जाये
जो तू राह में है तो सब रंग है
ले चल तू अपने मुझे साथ लेके,
मैं जी लूँ घड़ी भर तेरी पतंग है ।।
तेरे साथ बीते पलों को संजोये
तेरी राहें ढुँढू मैं गलियों में खोये
ना जाने की किस छोर पे तू मिलेगी
हर छोर पे इक जनम मैंने खोये
ऐ जीवन ! ये कब तक सज़ा मेरी होगी
चलूँ साथ मैं कब रज़ा तेरी होगी
इस छोर की भी कहानी ख़तम है
तेरे आश्रय से विदाई कब होगी
प्रतीक्षा करूँ मैं तेरे आगमन की
दिखाये जो तूने स्वप्न - आनंद है
ले चल तू अपने मुझे साथ लेके,
मैं जी लूँ घड़ी भर तेरी पतंग है ।।
-द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - ०८ / ०८ / २०१६