Thursday 7 July 2016

।। उस सागर से कुछ बूँद प्रिये, स्नेह-अश्रु अर्पण कर जाये ।।

हर रात्रि जगे आँखों में तेरी, तेरी स्मृति मे ये खो जाये 

जब तू समीप-सी होती है, उस छण को हर पल दोहराये 

सागर-सम विस्तृत भाव मेरे, बिन कहे ही काल गुज़र जाये 

उस सागर से कुछ बूँद प्रिये, स्नेह-अश्रु अर्पण कर जाये ।। 


मै आवारा तम मे खोया, है रात्रि पहर मे जगा-सोया

मेरा मन दौड़े द्रुत-गति पाकर, तू मिले न कही व्याकुल-सा हुआ 

जो मिले कही चक्षु थम जाये, तुझे देख-देख ये नम जाये 

मै हर्ष उठूँ मन भ्रम जाये, तेरे नयन मेरे संग ठन जायें 

उस मिलन से कुछ यादें लेकर, हे प्रिये ! मेरा मन सम जाये 

उस सागर से कुछ बूँद प्रिये, स्नेह-अश्रु अर्पण कर जाये ।। 


तुम रूठ गयी जबसे मुझसे, मै  विफल-विकल सा भ्रमण करुँ 

सत् -भौर मे कुंठित हृदय मेरा, मै मार्ग मे तेरी राह तकूँ 

हे प्रेम मेरी ! तू उबार मुझे, मेरे व्रत का मै निर्वाह करूँ 

तेरे प्रीत की भेंट भभूत लगा, तेरी छाया का श्रृंगार करूँ 

ये काल रात्रि आने से तेरी, स्मृतियाँ संग-संग सध् जाये 

उस सागर से कुछ बूँद प्रिये, स्नेह-अश्रु अर्पण कर जाये ।। 


हे काव्य ! यदा तू परिचित है, मेरे हिय् का भाव सुना उसको 

जो तू मुझसे प्रतिदर्पित है, मेरे विरह का हाल बता उसको 

तू वार्त मेरी उसके समक्ष कुछ ऐसे प्रस्तुत कर देना 

मेरी सुबह से लेकर साँझ सभी,  तू उसके हिय में गह देना 

कहना उससे आलिंगन हो, जड़ मन चेतन में आ जाये 

उस सागर से कुछ बूँद प्रिये, स्नेह-अश्रु अर्पण कर जाये ।। 


हे निशाकर! तेरी तीव्र चमक भी, धूमिल पड़ी गहरी-सी लगे 

क्यूँ अर्क -किरण ने भी तुझको, अपनी रश्मि से विलग किये 

कितनी कठोर ये बेरी है, जिसमे हम दो अभिश्राप लगे 

तेरी दशा दृस्टिगत मै जो करुँ, मुझे अपनी सी कुछ बात लगे 

सब मधु-शीतल स्वप्नों में रमे, और हम दोनों पिय राह तके 

चल अपनी व्यथा का हाल बता, आ हम दोनों कुछ बात करे 

प्रति-रैन यहाँ ही आकरके मै उसे स्मरण करता हूँ 

तेरे शीशमहल के दर्पण में  मै उसके दर्शन करता हूँ 

प्रिये ! जबसे अमावस काल भयी, छवि दर्शन को भी तरस जाये 

उस सागर से कुछ बूँद प्रिये, स्नेह-अश्रु अर्पण कर जाये । 



द्वारा - अविलाष  कुमार पाण्डेय 

दिनाँक - ०७ / ०७ / २०१६ 

















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