मेरी प्रीत तुझसे ना झूठी कभी थी
करुँ प्रेम तुझसे ही कैसे बताऊँ
हे प्रिय ! तुम मेरी आत्मा मे हो बसती
जो जीवित हूँ तुझ बिन ये कैसे बताऊँ
मेरे गीत जीवन के तुझ बिन अधुरे, जहाँ कल्पना हो मैं तुझको ही पाऊँ
प्रिये ! ज़िन्दगी की किताबों में तुझ संग, मै अपनी कहानी की कड़ियाँ बिताऊँ।
मै खोया हूँ पन्नों मे तुझ संग युगों से
चलूँ संग तेरे ही तेरी डगर पे
निकालूँ क्यूँ खुद को तेरे आश्रय से
ये जीवन-कहानी है पूरी हो तुझसे
प्रिये ! ये कथा प्रेम की जो चली है, उसे तुझपे ही मैं ख़तम करके जाऊँ
प्रिये ! ज़िन्दगी की किताबों में तुझ संग, मै अपनी कहानी की कड़ियाँ बिताऊँ।
तेरा साथ ना तेरी छाया मिले जो
कल्पना के ही पन्नों में मुझ संग जिए यों
मैं जीवन को अपने वहीं जाके जीलूँ
जहाँ तेरी बस्ती हो सब मे तुही हो
मैं देखुँ जहाँ भी तेरा दृश्य दरशे
तू अम्बर में भी हो धरा भी तुम्ही हो
मैं बादल हूँ प्रेमी बरसता जो तुझपे, जो ना तू मिले तो यूँ ख़ाली मडराऊँ
प्रिये ! ज़िन्दगी की किताबों में तुझ संग, मै अपनी कहानी की कड़ियाँ बिताऊँ।
प्रेमी तेरा जो मैं सदियों से ही हूँ
तेरे संग को ऐसे कैसे भुलादूँ
तुझसे जुड़ा जो मै सदियों से ही हूँ
पल भर में सदियाँ वो कैसे मिटा दूँ
जीवन के पन्नो से अपनी कहानी को
यूँ फाड़ के मैं अनल में मिला दूँ
प्रिये ! जीव मेरा जो जिता है तुझसे
उसे बिन तेरे मैं यूँ कैसे जिलाऊँ
मिला सातवाँ ये जनम तेरे संग है, इसे मैं यूँ कैसे ही ऐसे गवाऊँ
प्रिये ! ज़िन्दगी की किताबों में तुझ संग, मै अपनी कहानी की कड़ियाँ बिताऊँ।
द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - २३.०७.२०१६
करुँ प्रेम तुझसे ही कैसे बताऊँ
हे प्रिय ! तुम मेरी आत्मा मे हो बसती
जो जीवित हूँ तुझ बिन ये कैसे बताऊँ
मेरे गीत जीवन के तुझ बिन अधुरे, जहाँ कल्पना हो मैं तुझको ही पाऊँ
प्रिये ! ज़िन्दगी की किताबों में तुझ संग, मै अपनी कहानी की कड़ियाँ बिताऊँ।
मै खोया हूँ पन्नों मे तुझ संग युगों से
चलूँ संग तेरे ही तेरी डगर पे
निकालूँ क्यूँ खुद को तेरे आश्रय से
ये जीवन-कहानी है पूरी हो तुझसे
प्रिये ! ये कथा प्रेम की जो चली है, उसे तुझपे ही मैं ख़तम करके जाऊँ
प्रिये ! ज़िन्दगी की किताबों में तुझ संग, मै अपनी कहानी की कड़ियाँ बिताऊँ।
तेरा साथ ना तेरी छाया मिले जो
कल्पना के ही पन्नों में मुझ संग जिए यों
मैं जीवन को अपने वहीं जाके जीलूँ
जहाँ तेरी बस्ती हो सब मे तुही हो
मैं देखुँ जहाँ भी तेरा दृश्य दरशे
तू अम्बर में भी हो धरा भी तुम्ही हो
मैं बादल हूँ प्रेमी बरसता जो तुझपे, जो ना तू मिले तो यूँ ख़ाली मडराऊँ
प्रिये ! ज़िन्दगी की किताबों में तुझ संग, मै अपनी कहानी की कड़ियाँ बिताऊँ।
प्रेमी तेरा जो मैं सदियों से ही हूँ
तेरे संग को ऐसे कैसे भुलादूँ
तुझसे जुड़ा जो मै सदियों से ही हूँ
पल भर में सदियाँ वो कैसे मिटा दूँ
जीवन के पन्नो से अपनी कहानी को
यूँ फाड़ के मैं अनल में मिला दूँ
प्रिये ! जीव मेरा जो जिता है तुझसे
उसे बिन तेरे मैं यूँ कैसे जिलाऊँ
मिला सातवाँ ये जनम तेरे संग है, इसे मैं यूँ कैसे ही ऐसे गवाऊँ
प्रिये ! ज़िन्दगी की किताबों में तुझ संग, मै अपनी कहानी की कड़ियाँ बिताऊँ।
द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - २३.०७.२०१६
Sahi hai yaar dil khoo gaya :)
ReplyDeleteमेरी बात रही मेरे मन में
ReplyDeleteकुछ कह न सकी उलझन में
मेरे सपने अधूरे, हुए नहीं पूरे
आग लगी जीवन में
मेरी बात रही मेरे मन में ...
ओ रसिया, मन बसिया
रग रग में हो तुम ही समाये
मेरे नैना करे बैना
मेरा दर्द न तुम सुन पाये
जिया मोरा प्यासा रहा सावन में
मेरी बात रही मेरे मन में ...
कुछ कहते, कुछ सुनते
क्यों चले गये दिल को मसल के
मेरी दुनिया हुई सूनी
बुझा आस का दीपक जल के
छाया रे अन्धेरा मेरी अखियन में
मेरी बात रही मेरे मन में ...
तुम आओ कि न आओ
पिया याद तुम्हारी मेरे संग है
तुम्हे कैसे ये बताऊँ
मेरी प्रीत का निराला एक रंग है
लागा हो ये नेहा जैसे बचपन में
मेरी बात रही मेरे मन में..!!!!
Kya baat h sir...nice one
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