ये रातें भी कम अब तो पड़ने लगीं , लगन मुझको तुझसे ही ऐसी लगी।
हृदय मेरे तू मुझको मिल जा अभी, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
ज़रा सा तू करले नज़र इस तरफ,
मैं देखूँ तुझे तेरी आँखों में बसके,
शहर ख़ाली मेरा हुआ तेरे बिन है,
मैं बस जाऊँ तुझमे तेरे जैसा बनके।
भँवर में मिलूंगा तू आजा वहीं, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
पता ना चले मुझको ऐसी जगह दे,
स्वपन में ही रखले ना कोई विरह दे,
अकेला-सा हूँ मैं तू अपना समझले,
उम्र भर के लिए मुझको बाँहों में करले,
तू बाँहों में भरले, मुझे अपना करले,
मैं रह जाऊँ तेरा, तू कुछ ऐसा करले।
श्वासें हैं गुम-सी, ख़फ़ा -सी कहीं, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
यूँ रातों की कजली में ढूँढ़े तुझे दिल,
तू चंदा की उजली में आजा मुझे मिल,
बारिश-सी पड़ जा मुझपे तू झिलमिल,
बूँदों को तेरी तरसा मै तिलतिल।
मै बादल आवारा जो बरषा नहीं, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
अब रातों की कालिख भी छटने लगी है,
प्रतीक्षा भी अब और बढ़ने लगी है,
मैं व्याकुल-सा भटकूँ तिमिर में नीरा-सा,
तेरी चाहते मुझसे अड़ने लगी हैं।
मैं तुझको पुकारूँ तू खोई कही, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
हे रात्रि ! तू मेरी व्यथा को समझले,
मैं मिल जाऊँ उससे ज़रा सा ठहरले,
उजाला ना होवे तू सूरज को ढकले,
कर कुछ जतन जो मेरी चाह रखले,
मेरी आस तू , ज़रा बात रखले,
प्रेम-पथिक राही की तू चाह रखले।
हे प्रिय मेरी ! तू देर कर अब नहीं, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
ये रातें भी कम अब तो पड़ने लगीं , लगन मुझको तुझसे ही ऐसी लगी।
हृदय मेरे तू मुझको मिल जा अभी, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - ०४. जुलाई . २०१६
हृदय मेरे तू मुझको मिल जा अभी, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
ज़रा सा तू करले नज़र इस तरफ,
मैं देखूँ तुझे तेरी आँखों में बसके,
शहर ख़ाली मेरा हुआ तेरे बिन है,
मैं बस जाऊँ तुझमे तेरे जैसा बनके।
भँवर में मिलूंगा तू आजा वहीं, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
पता ना चले मुझको ऐसी जगह दे,
स्वपन में ही रखले ना कोई विरह दे,
अकेला-सा हूँ मैं तू अपना समझले,
उम्र भर के लिए मुझको बाँहों में करले,
तू बाँहों में भरले, मुझे अपना करले,
मैं रह जाऊँ तेरा, तू कुछ ऐसा करले।
श्वासें हैं गुम-सी, ख़फ़ा -सी कहीं, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
यूँ रातों की कजली में ढूँढ़े तुझे दिल,
तू चंदा की उजली में आजा मुझे मिल,
बारिश-सी पड़ जा मुझपे तू झिलमिल,
बूँदों को तेरी तरसा मै तिलतिल।
मै बादल आवारा जो बरषा नहीं, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
अब रातों की कालिख भी छटने लगी है,
प्रतीक्षा भी अब और बढ़ने लगी है,
मैं व्याकुल-सा भटकूँ तिमिर में नीरा-सा,
तेरी चाहते मुझसे अड़ने लगी हैं।
मैं तुझको पुकारूँ तू खोई कही, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
हे रात्रि ! तू मेरी व्यथा को समझले,
मैं मिल जाऊँ उससे ज़रा सा ठहरले,
उजाला ना होवे तू सूरज को ढकले,
कर कुछ जतन जो मेरी चाह रखले,
मेरी आस तू , ज़रा बात रखले,
प्रेम-पथिक राही की तू चाह रखले।
हे प्रिय मेरी ! तू देर कर अब नहीं, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
ये रातें भी कम अब तो पड़ने लगीं , लगन मुझको तुझसे ही ऐसी लगी।
हृदय मेरे तू मुझको मिल जा अभी, विवश मैं यहाँ तू दिखे ना कहीं ।।
द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - ०४. जुलाई . २०१६
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