Saturday 7 October 2017

।। आघात ।।

शशि तेज़ तुम्हारा धूमिल हुआ
अम्बर कालिख विस्तार भयी
अब श्वेत-रश्मि की जाल छँटी
नभ-मण्डल हाहाकार भयी
भयभीत आवरण-सी बदरी
हलचल नभ त्राहि पुकार भयी
परिवर्तन शून्य में देख मेरे
हिय में क्रंदन की धार बही।।

चाँदी समतल इस नभ-तल में
बदलाव बयार की रात्रि बही
अब धुंध प्रकोप प्रभाजन से
नभ-उपवन अंध पसार रही
निशि को निगला अँधियारे ने
घन व्यापक सर्व-प्रसार भयी
क्रोधित चपला चमके नभ में
ज्यों चंद्रलोक में रार भयी
घन-कटक वार अब द्वार खड़े
निशि राज्य विकट उत्पात भयी
हलचल नभ में सब देख मेरे
हिय में क्रंदन की धार बही।।

नभ ने साधे कुछ तीर तेज़
बूँदों के अलौकिक बाणों से
गति अति अदभुत हों तीव्र वेग
ज्यों निकले तीर कमानों से
हिय भेद मेरा घायल करदें
गिरती बूँदें घनयानों से
मन स्थिरता में लगी सेंध
बरसी विपदा असमानों से
बदले सुर में संसार लगे
बदली-बदली सी बयार बही
बदलाव आवरण सृष्टि देख
हिय में क्रंदन की धार बही।।

आक्रामक अरि-प्रहार निष्ठुर
दे वार साध कर अति-स्थिर
जल से जल जाये देह अधीर
बरसे जल अस जस तीव्र मिहिर
उसपर झोंकों का कुटिल समीर
दे देह कँपाज्यों मध्य शिशिर
अरि की चहुँ ओर प्रकोप बहे
हर ओर मेघ हुँकार चली
घन की अति-वृष्टि देख मेरे
हिय में क्रंदन की धार बही।।

देखी न कभी चक्षुओं ने मेरी
ऐसी अति वृष्टि प्रकोप सरि
प्रतिकूल लगें सब दशा मेरी
ऐसी बरसी भय-बुन्देश्वरी
प्रतिघात निपुण कठोर अरी 
कालिख सी लगे सृजन-सुन्दरी 
इस दीन-दशा की पहर कठिन 
जो धैर्य-बांध भी टूट गयी 
परिवर्तन शून्य में देख मेरे
हिय में क्रंदन की धार बही।।



द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय 
दिनाँक - ०७.१०.२०१७