हाँ धैर्य बाँध पुरजोर चला
सम्मुख मेरे चट्टान अडिग
गिरते-पड़ते पथ ओर चला
जीवन मैं निरन्तर राह तेरी
जिस ओर चली उस ओर चला ।।
जीवन पथ भी कुछ है ऐसा
जो चले निरन्तर चाल नयी
सोची-समझी तैयारी की
ना इसमें कोई कमाल नहीं
बस खोल छोड़ दे नद्-धारा
बहकर चलदे इस सागर में
लघुता में तेरी निज हानि है
सब भरलें तुझको गागर में
हर बन्द द्वार तू खोल सभी
अंधे मन-मन्दिर दीप जला
जीवन मैं निरन्तर चाल तेरी
जिस ओर चली उस ओर चला ।।
मैं राह में तेरी चल निकला
कुछ चाह लिये अंतर्मन में
निज भोर-रश्मि जा शाम ढले
कुछ तो पा लूँगा जीवन में
ना मिटें कदम जो चाप दिये
धूलि में तेरी हमने चलके
ना भार का कोई काम नहीं
तुझको है लिया हमने हलके
चल दी है तेरी मझधारों में
हिम्मत को मेरी पतवार बना
जीवन मैं निरन्तर चाल तेरी
जिस ओर चली उस ओर चला ।।
कुछ साथ मेरे थे छूट गये
राहों के जटिल वीरानों में
आगे कश्ती है रिक्त मेरी
टकराये जो तूफ़ानो से
ना भरमा सकती है मुझको
मंजिल मेरी बढ़ पाने से
ये दौर मेरा है, तेरा नहीं
कुछ ना होगा भरमाने से
चलना है तुझ संग पार क्षितिज
चल चले चलें अब कदम मिला
जीवन मैं निरन्तर चाल तेरी
जिस ओर चली उस ओर चला ।।
द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - ३०. १२. २०१७