Monday 30 March 2020

।। हम - तुम ।।

कुछ बात नहीं होने देती
हलचल प्रतिपल जज़्बात जो हैं
सूना-सूना सँसार दिखे
सहमी-सहमी सी रात जो है।।

हमसाये भी अब साथ नहीं
या ख़तम हो गयी बात कहीं
सूनेपन के इस सागर में
क्या डूब गयी बरसात कहीं
ये रात ना अब सोने देती
बिगड़े से हुये हालात जो हैं
सूना-सूना सँसार दिखे
सहमी-सहमी सी रात जो है।।

मुँह फेर लिये ना ज़िक्र कोई
नयनों का मैं ज्ञाता तो नहीं
ना समझ नहीं मुझको आती
ये खेल तेरा है लुका-छिपी
सुलझा लेता रुसवा हिय को
किस ओट छिपे हमराज़ जो हैं
सूना-सूना सँसार दिखे
सहमी-सहमी सी रात जो है।।।

कारण तो रुखाई का कुछ है
रूठा क्यूँ जड़ क्यूँ गुपचुप है
दिवानेपन ये क्या रुख है
बेबस ये मेरा मन उत्सुक है
निर्वाक आशिक़ी का मारा
बद्तर से हुए हालात जो हैं
सूना-सूना सँसार दिखे
सहमी-सहमी सी रात जो है।।

दिन-रात कभी ऐसे तो ना थे
नीरस सपने व्याकुल मन के
है प्रीत में कुछ तो गाँठ पड़ी
असह्य लगे नख़रे उनके
ना स्नेह नहीं कुछ और है ये
क्यों घुँटे हुये एहसास जो हैं
सूना-सूना सँसार दिखे
सहमी-सहमी सी रात जो है।।

उस मोड़ पे है ये दिवानापन
जब करलें अपना साथ ख़तम
नख़रों को तेरे उठाने को
प्रिय! हुआ नहीं बस मेरा जनम
अब आग का दरिया पार करें
किसमें इतनी अवक़ात जो है
सूना-सूना सँसार दिखे
सहमी-सहमी सी रात जो है।।


द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - ३०. ०३. २०२०



Wednesday 25 March 2020

।। कॅरोना संघर्ष ।।

आशा की सुबह जब निकलेगी 
इस रात की बस अब देरी है 
जीवन के क्षितिज़ पर नज़र मेरी 
पावों में भले ही बेड़ी है।।

ये हार जीत की रात नहीं 
ले अपनों को तूँ साथ सभी 
न कर नासमझी रे मानव 
खुद से लड़ना है व्यर्थ अभी 
आशा की कहानी कहता मैं 
उबरेगा समस संसार सही 
जो आज भयावह बादल हैं 
कल हो जायेंगे लुप्त कहीं  
चिंता में चिता का वास समझ 
जो व्यर्थ की कुण्ठा घेरी है 
जीवन के क्षितिज़ पर नज़र मेरी 
पावों में भले ही बेड़ी है।।

हिम्मत तेरे मैं द्वार चला
संयम से मेरा जो ताल मिला 
यहाँ पाँव की गति का काम नही 
मेरा स्वतंत्र व्यवहार चला 
जो आज द्वार ज़ंजीर बंधी 
उसमें मानव तेरा ही भला 
छण भर की सुविधा लेने को 
ना घोंट ढीठ औरों का गला 
विचरण क्यों करें उन राहों में 
जो तेरी भी और मेरी है 
जीवन के क्षितिज़ पर नज़र मेरी 
पावों में भले ही बेड़ी है।।

 ये परिवर्तन की बेला है 
जो सबने मिलकर झेला है 
विपदा से कोई इंकार नहीं 
बस तूने कैसे खेला है? 
आतम-शक्ति आह्वान करो 
धीरज तो धरो संज्ञान भरो 
तुम मनुपुरुष के अंश भला 
ना तुम न अभी हिम्मत को धरो 
संघर्ष की शक्ति जगालो सब 
ये शत्रु भयावह बैरी है 
जीवन के क्षितिज़ पर नज़र मेरी 
पावों में भले ही बेड़ी है।।

हर बेड़ी तोड़ा है मनु ने 
इस बार शत्रु का धोखा है
ये कुरुक्षेत्र की घात नहीं
बस खुद को घर में रोका है
मायावी रिपु ने सबको ही
एक चक्रव्यूह में घेरा है
अभिमन्यु तूँ अब चाल बदल
तेरा सदन शत्रु का कोहरा है
शत्रु दमन को करने को
ये लुका-छिपी ही जरुरी है
जीवन के क्षितिज़ पर नज़र मेरी 
पावों में भले ही बेड़ी है।।

।।  Stay Home. Stay Alive ।।


द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - २५.०३.२०२०