Tuesday 25 December 2018

।। जीवन - परिचय ।।


पन्नों में तेरे जो जगह कहीं
कुछ पंक्ति मेरे भी नाम तू लिख
जीवन-पथ के कुछ अकथ लेख
गर नाम न हो तो अनाम ही लिख।।

भूला-बिसरा कुछ याद तुझे
स्मृति पे अपनी ज़ोर तू दे
तेरे ही पथ का ग्राहक मैं
निष्ठा का मेरी कुछ श्रेय तो दे
जीवन भर की मज़दूरी का
खाते में कोई ईनाम तो लिख
जीवन-पथ के कुछ अकथ लेख
गर नाम न हो तो अनाम ही लिख।।

तेरे जीने के अनुभव को  
मैं हूँ उत्सुक बतलाने को 
एक सुबह खुली उम्मीदों की 
एक शाम जो ढल ही जाने को 
संतुलित, समाहित जीवन तूँ 
हर लेन-देन का काम तू लिख 
जीवन-पथ के कुछ अकथ लेख
गर नाम न हो तो अनाम ही लिख।।

बेमतलब के इस जीवन में 
कुछ मिला नहीं कुछ गुमा नहीं 
चलते-चलते मंज़िल हैं ख़तम 
कुछ ख़र्च नहीं कुछ अर्थ नहीं 
इस हानि-लाभ के खाते में 
सीधा-सुलझा ही ज़ुबान तू लिख 
जीवन-पथ के कुछ अकथ लेख
गर नाम न हो तो अनाम ही लिख।।

कुछ मेरा भी तो परिचय हो 
बेनाम अँधेरों  के बाहर 
तुझको तो कोई फ़र्क नहीं 
मैं बूँद, तू है गहरा साग़र 
गहरे साग़र सम स्थिर बन 
अपनी बूँदों का प्रमाण तू लिख 
जीवन-पथ के कुछ अकथ लेख
गर नाम न हो तो अनाम ही लिख।।

ये माँग मेरी है स्वार्थ निहित 
पर दौड़ तेरी भी है लोभी 
साधारण दौड़ के हिस्सा हैं 
उपहार की आस में भी योगी 
कुछ को तन की धन की ख़्वाहिश 
कुछ को सुख़-दुःख निर्वाण तू लिख 
जीवन-पथ के कुछ अकथ लेख
गर नाम न हो तो अनाम ही लिख।।

निर्वाण मिले ना मिले मुझे 
पहचान मेरी हो साथ मेरे 
कुछ तो आदर्श मेरा अंकित 
शमशान से पहले मिले मुझे 
मेरे तर्क का हो कुछ अर्थ अगर 
तो लिख मेरी पहचान तू लिख 
जीवन-पथ के कुछ अकथ लेख
गर नाम न हो तो अनाम ही लिख।। 


द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय 
दिनाँक - २५. १२. २०१८ 

Saturday 12 May 2018

।। आलोचना ।।

सन्दर्भ-युक्त है भाव-लिप्त
चलता-फ़िरता जीवन मेरा
हैं मिली-जुली ख़ुशियाँ ग़म सब
कुछ ख़र्च किये कुछ बचा लिया।।

अपनी बातें अपने तक ही
व्यक्तित्व मेरा है संकोची
क्यों कहूँ भला तुमसे ये सब
स्वामित्व मेरा सब मेरा ही
ना कहूँ इसे मैं कँजूसी
लफ्ज़ो को उड़ाना शौक़ नहीं
बातों को दबा रख लेता हूँ
आलोचन जिस-जिस ठौर बही
अपनी ऐसी पहचान लिये
दुनियाँ को ठेंगा दिखा दिया
हैं मिली-जुली ख़ुशियाँ ग़म सब
कुछ ख़र्च किये कुछ बचा लिया।।

चलते जीवन से गिला नहीं
साथी है मेरा ना बैर कोई
हूँ गले लगाते चला गया
ग़लती इसकी, फिर हो ये सही
जो भी है, जीवन मेरा
इसमें दूजों का काम नहीं
इस वृस्तित में आज़ाद निरा
तेरी बातों का दाम नहीं
दृष्टिकोण स्पष्ट मेरा
दकियानूसी को भुला दिया
हैं मिली-जुली ख़ुशियाँ ग़म सब
कुछ ख़र्च किये कुछ बचा लिया।।

जो ठीक लगे वो ह्रदय मेरा
जो रास नही वो कौन भला
इसकी-उसकी सुनने में ही
लोगों ने दिया है ख़ून ज़ला
ना झेंप मुझे ना कोई गिला
जो छूटे उनको छोड़ चला
मेरी दुनिया है शर्त मेरी
समझूँ मैं अपना बुरा-भला
नाटक संसारी छोड़-छाड़
जीवन को मनोरम भोर किया
हैं मिली-जुली ख़ुशियाँ ग़म सब
कुछ ख़र्च किये कुछ बचा लिया।।

मेरी राहें तो भली चलीं
तुमको जो चलना संग मेरे
तो छोड़ तमाशा आ जाओ
चलतें हैं वहाँ, जहाँ रंग भरे 
छूटे आलोचक परे कहीं 
अपनेपन का श्रृंगार करें 
अपने होने का गर्व हमें 
निजता का नया संसार करें 
निज-उद्भव का संज्ञान हमें 
ना कोई समीक्षा पार किया 
हैं मिली-जुली ख़ुशियाँ ग़म सब
कुछ ख़र्च किये कुछ बचा लिया।।



द्वारा - अविलाष  कुमार पाण्डेय 
दिनाँक - १२. ०५. २०१८ 


Tuesday 6 February 2018

।। साझा करने आयी मुझसे रातों की अकेली आज निशा ।।


हलचल पल-पल है मनोदशा
तम के दलदल में कहीं धँसा
है उथल-पुथल करवट लेती   
भारी गुजरेगी आज निशा
दस्तक देती मेरे चौखट 
धीरे से पुकारे नाम मेरा 
साझा करने आयी मुझसे 
रातों की अकेली आज निशा ।।

आँखें ना मूंदें उजियारा
चादर ओढ़े जो हटा दिया 
सब झूठे-मुठे जतन करूँ 
निद्रा ने ऐसा दगा दिया 
जग को मीठे सपनों में रमा 
बैठी मेरे संग लिए सुरा 
जाने किस जश्न में है बैठी 
रातों की महफ़िल सजा लिया 
कहती जीले संग रात्रि मेरे 
फिर सुबह मिले ना मिले भला 
साझा करने आयी मुझसे 
रातों की अकेली आज निशा ।।

Saturday 13 January 2018

।। प्रकृति की गोद में ।।

जा क्षितिज लगा है ये दिनकर
शीतल मन चन्दन छाँह बिछे
क्रोधित सृष्टि का ज्वलित ज्वार
कम हुआ नरम व्यवहार दिखे
ज्यों आत्मज के रूखेपन पे
माँ की ममता आभार दिखे
सबको आँचल में छुपा लिया
जो सहमा-सा सँसार दिखे।।

दिन बना कुम्हार अजा सबका
गढ़ता जीवन भरता सबमें
माटी के बने निर्जीवित हम
दे ठोंक-पीट गढ़ता हमने
दिन भर के कठिन परिश्रम में
जब दबा-दबा सँसार दिखे
रजनी का चादर ओढ़ा दिया
जो सहमा-सा सँसार दिखे।।

जननी औ जनक का भार लिये
वाहक सारा परिवार लिये
दिन भर हमपर बरते गरमी
हर रात्रि न्योछावर प्यार दिये
देती हमको दीक्षा सारी
हर सीख जिसे सत साल जियें
सर्वस्व उपस्थित सर्वभूत
सबपर अपनी है नेत्र किये
बल से परिपूर्ण बुद्धि विकसित
मनु के वंशज का मार्ग दिखे
पालक बनके सब जता दिया
जो सहमा-सा सँसार दिखे।।

मनु-रूपा के समागम से
मानवता बरसी इस वसुधा
सृष्टि ने उठाया गोद हमें
भर-पूर दिया सब सुख-सुविधा
जो उदर भरे फल-फूल दिया
जो देह ढके वो धूल दिया
जीजीविषता को तूल दिया
जो हर मौसम अनुकूल दिया
है आज दिया सब उसका ही
जो छत ऊपर विस्तार दिखे
सबको आँचल में छुपा लिया
जो सहमा-सा सँसार दिखे।।

जो आज साँझ को देख मुझे
सृष्टि की दया की बात मझी
दिनभर के कौतूहल से अलग
सुख रात्रि समां सौहार्द लगी
थककर जब रात ने लेप किया
आँखों की सकल तब प्यास बुझी
सपनों की सुन्दर घाटी में
मुझको अम्बर उजियार दिखे
सबको आँचल में छुपा लिया
जो सहमा-सा सँसार दिखे।।






















द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - १३. ०१. २०१८

Friday 5 January 2018

।। टुटा पत्ता - The broken Leaf ।।



है टूट गिरा आधार मेरा
सब छूट गया परिवार मेरा
अब सफ़र अकेला राह मेरी
तरु से टुटा व्यवहार मेरा।।


गिरते-उड़ते तरु शाखों से
आफ़त ने लिया है घेर मुझे
प्रतिघात हवा ने बरसाये
सब अपना साधे बैर मुझे
निर्बल सहता मैं वार सभी 
छूटा है अभी जो घर मेरा 
अब सफ़र अकेला राह मेरी
तरु से टुटा व्यवहार मेरा।। 


जो रश्मि मुझे मनभावन थी 
तरुघर के झरोखों से आती 
हर रोज मुझे छु करके जब 
मेरे गालों पे इठलाती 
छुपती वो कभी तो कभी-कभी 
एकदम से नेत्र नहा जाती 
स्मृत करके वो अठखेली 
मेरी आँखें भी झर जातीं 
उन धुप की किरणों ने हँसकर  
बरसा डाला अंगार निरा 
अब सफ़र अकेला राह मेरी
तरु से टुटा व्यवहार मेरा।।


कर शक्ति प्रदर्शन हवा मुझे 
नद्-दरिया में अब छोड़ गयी 
पर्वत-सम ऊँचे धार चढ़ा 
लहरें भी मेरा दम तोड़ गयीं 
खुद की ऐसी क्षति देख मुझे 
दुर्गति भी चिढ़ा मुँह मोड़ गयी 
एकलता का ऐसा मुझपर 
भरी-भरकम है पहाड़ गिरा 
अब सफ़र अकेला राह मेरी
तरु से टुटा व्यवहार मेरा।।


तरु से लिपटे मैंने कितने 
सावन की रिम-झिम खूब जिया 
बौछारों की मधुरिम वर्षा में 
तन-मन अपना भीग लिया 
तरु के विस्तृत आँगन में सब 
जीवन के अपने कृत्य किया 
छोटे कोंपल से पत्ते तक
सब सफ़र यहीं पर सिद्ध किया 
अब छोड़ चला जब इस घर को 
सब बैरी है संसार मेरा 
अब सफ़र अकेला राह मेरी

तरु से टुटा व्यवहार मेरा।।


द्वारा- अविलाष कुमार पाण्डेय 
दिनाँक- ०६. ०१. २०१८