आ शौर्य बना आवरण तेरा
चल निकल पड़ें बस राहों पर
मन में ना रख सन्देह कोई
अपनी इन लौह-भुजाओं पर
मिलती मंजिल ना पथिक कभी
घर की दरख़्त की छाहों पर
जल जाये आज तो फिकर नहीं
कल धुप मिलेगी राहों पर ।।
डर जलने का तू त्याग अभी
जीवन की अग्नि-परीक्षा में
सोया राही तू जाग अभी
अपने मन-शक्ति समीक्षा में
झूठा हठ मन से त्याग अभी
इस नए दौर की शिक्षा में
हर ज्ञान का करले जाप अभी
इस मन-मन्दिर की इच्छा में
हर राह की डगर है खुली अभी
कौतुहल है चौराहों पर
जल जाये आज तो फिकर नहीं
कल धुप मिलेगी राहों पर ।।
चल कदम ताल से ताल मिला
है आज प्रदर्शन की बारी
तू इस समाज की ताक़त है
कन्धों पे लिये ज़िम्मेदारी
है युवा अटल तू पर्वत-सा
स्थिर, अभेद पहरेदारी
तू बढ़ आगे अनुसरण करें
सब वृद्ध, व्यस्क और नर-नारी
है शक्ति-सबल तू कर्म-निपुण
सब देखे तुझे निगाहों पर
जल जाये आज तो फिकर नहीं
कल धुप मिलेगी राहों पर ।।
मूर्छित समाज की आस है तू
आधार है तेरी भुजाओं में
काया कुटुंब की बदलेगी
संकल्प उठा इन राहों में
जन्मा मनुष्य का अंश है तू
विश्राम तुझे ना छाहों में
हे युवा! निकल तू राह बना
हर दृष्टि है तेरी भुजाओं पर
जल जाये आज तो फिकर नहीं
कल धुप मिलेगी राहों पर ।।
कल धुप खिलेगी नयी-नयी
उसमे झलकेगा शौर्य तेरा
उज्जवलित सृष्टि की चमक में तू
हर रश्मि में होगा अंश तेरा
ये नव-समाज स्थापित हो
जिसके स्तम्भ में तू हो भरा
आधारभूत जिसकी हो अडिग
निर्माण भव्य हो वृहत नीरा
तेरी बातें दोहरायें सभी
आदर्श-पथिक की यादों पर
जल जाये आज तो फिकर नहीं
कल धुप मिलेगी राहों पर ।।
द्वारा- अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - १७. ११. २०१७