Saturday 4 November 2017

।। सौंदर्य ।।

हिय हर्ष उठा रे कजरारी
नयनों में तेरी जो छाप पड़ी
सौंदर्य रूप श्यामल तेरा
विह्वल मन-तार तरँग उठी
मन-विहग राग में चहक उठे
उपवन-मन कलियाँ भी मँहकी
चन्दन वर्षा आनंद मिले
जो तूँ  निहार कर मुझे चली।। 

चन्दन-सी पवन तुझसे आकर
मेरे अत्र-तत्र वारिद छाये
मन महक उठा आनन्दित हो
प्रियतम तुम जब सम्मुख आये
मन किंकर्तव्यविमूढ़ मेरा
हलचल व्याख्यान ना कर पाये
प्रतिबन्ध में बँधा है मन मेरा
चक्षुओं में तेरी झाँके जाये
भ्रम-भौंर सी गहन नज़र तेरी
मद मस्त ये मन बहका जाये 
ना रोक सकूँ खुद को निर्बल 
आकर्षण ज़ाल  में फँस जाये 
स्वातंत्र्य मेरा छीना तुमने 
हिय को अपने संग बाँध चली 
चन्दन वर्षा आनंद मिले
जो तूँ  निहार कर मुझे चली।। 

जो फूट पड़े हिय-गीत मेरे 
हिय से बंधन बांधे जाये 
मधुरिम वर्षा की तरंगों में 
गीला मन नम हो बह जाये 
बहकर मन स्वपन की धार मेरे 
तेरे सानिध्य को पा जाये 
करके प्रहार मन विवश करे 
मोहक भावों की गिरी बिजली 
चन्दन वर्षा आनंद मिले
जो तूँ  निहार कर मुझे चली।। 

पाया तुमने जो रूप-कुम्भ
 ना-ना प्रकार के गुणों भरे 
हो बाह्य आवरण भी जिसमें 
श्रृंगार रूप पाकर निखरे 
हर एक भाग में कला तेरी 
किस ओर से व्याख्या शुरू करें 
आँखें मधु मद में मनमायी 
इस दृश्य की साक्ष्य हैं नेत्र मेरे 
तेरे रूप-सोम की मादकता 
मेरे अम्बर पे अब घोर चली 
चन्दन वर्षा आनंद मिले
जो तूँ  निहार कर मुझे चली।। 

गन्धर्व, नाग तू सर्वोपरी 
तू जहाँ-जहाँ पग धार चले 
हों पाप-मुक्त नर सभी वहाँ 
गँगा जैसी तू धार चले 
अर्पण करके तुझे देह मेरी 
परलोकी मन ये सिधार चले 
अंधी रातों का पतंग ये मन 
आगे क्या जाने प्राण चले 
तुझसा लव-दीपक पा करके 
अस्तित्व मेरा हर रात जले 
मेरे रोम-रोम में गढ़ी जो तुम 
हिय से पुकार सत बार चली 
चन्दन वर्षा आनंद मिले
जो तूँ  निहार कर मुझे चली।। 


द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय 
दिनाँक - ०४ .११.२०१७ 

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