Tuesday 6 February 2018

।। साझा करने आयी मुझसे रातों की अकेली आज निशा ।।


हलचल पल-पल है मनोदशा
तम के दलदल में कहीं धँसा
है उथल-पुथल करवट लेती   
भारी गुजरेगी आज निशा
दस्तक देती मेरे चौखट 
धीरे से पुकारे नाम मेरा 
साझा करने आयी मुझसे 
रातों की अकेली आज निशा ।।

आँखें ना मूंदें उजियारा
चादर ओढ़े जो हटा दिया 
सब झूठे-मुठे जतन करूँ 
निद्रा ने ऐसा दगा दिया 
जग को मीठे सपनों में रमा 
बैठी मेरे संग लिए सुरा 
जाने किस जश्न में है बैठी 
रातों की महफ़िल सजा लिया 
कहती जीले संग रात्रि मेरे 
फिर सुबह मिले ना मिले भला 
साझा करने आयी मुझसे 
रातों की अकेली आज निशा ।।