Saturday 12 May 2018

।। आलोचना ।।

सन्दर्भ-युक्त है भाव-लिप्त
चलता-फ़िरता जीवन मेरा
हैं मिली-जुली ख़ुशियाँ ग़म सब
कुछ ख़र्च किये कुछ बचा लिया।।

अपनी बातें अपने तक ही
व्यक्तित्व मेरा है संकोची
क्यों कहूँ भला तुमसे ये सब
स्वामित्व मेरा सब मेरा ही
ना कहूँ इसे मैं कँजूसी
लफ्ज़ो को उड़ाना शौक़ नहीं
बातों को दबा रख लेता हूँ
आलोचन जिस-जिस ठौर बही
अपनी ऐसी पहचान लिये
दुनियाँ को ठेंगा दिखा दिया
हैं मिली-जुली ख़ुशियाँ ग़म सब
कुछ ख़र्च किये कुछ बचा लिया।।

चलते जीवन से गिला नहीं
साथी है मेरा ना बैर कोई
हूँ गले लगाते चला गया
ग़लती इसकी, फिर हो ये सही
जो भी है, जीवन मेरा
इसमें दूजों का काम नहीं
इस वृस्तित में आज़ाद निरा
तेरी बातों का दाम नहीं
दृष्टिकोण स्पष्ट मेरा
दकियानूसी को भुला दिया
हैं मिली-जुली ख़ुशियाँ ग़म सब
कुछ ख़र्च किये कुछ बचा लिया।।

जो ठीक लगे वो ह्रदय मेरा
जो रास नही वो कौन भला
इसकी-उसकी सुनने में ही
लोगों ने दिया है ख़ून ज़ला
ना झेंप मुझे ना कोई गिला
जो छूटे उनको छोड़ चला
मेरी दुनिया है शर्त मेरी
समझूँ मैं अपना बुरा-भला
नाटक संसारी छोड़-छाड़
जीवन को मनोरम भोर किया
हैं मिली-जुली ख़ुशियाँ ग़म सब
कुछ ख़र्च किये कुछ बचा लिया।।

मेरी राहें तो भली चलीं
तुमको जो चलना संग मेरे
तो छोड़ तमाशा आ जाओ
चलतें हैं वहाँ, जहाँ रंग भरे 
छूटे आलोचक परे कहीं 
अपनेपन का श्रृंगार करें 
अपने होने का गर्व हमें 
निजता का नया संसार करें 
निज-उद्भव का संज्ञान हमें 
ना कोई समीक्षा पार किया 
हैं मिली-जुली ख़ुशियाँ ग़म सब
कुछ ख़र्च किये कुछ बचा लिया।।



द्वारा - अविलाष  कुमार पाण्डेय 
दिनाँक - १२. ०५. २०१८ 


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