Saturday 18 June 2016

!! प्रेम-पथिक !!

मेरी रैन बसे तेरी बाँहों  में,
मेरी नैन लगे तेरी साँसों  में
मैं छण-छण सदियाँ  जीता हू, तेरी गह -कजरारी आँखों  में....

यों पीता हूँ तेरे नेत्र-रस,
ज्यों ज़नम-ज़नम की प्यास लगे.
जैसे भ्रमर आवारा भटकल में,
उसे पुष्प-मिलन की आस लगे.

मैं ओढ़ हया लू सब  तेरी, इन बदरारी बरसातों  में.
मैं छण-छण सदियाँ  जीता हू, तेरी गह -कजरारी आँखों  में....

तेरी श्वाँस लगे मधुकर-चंदन,
मेरी रात्रि मधुर सावन-सी लगे.
तेरी बाँहों  की वरमाला  में,
मुझे आस लगे मेरी प्यास बुझे.
मेरा अन्तर-आत्म भीग गया,
तेरे प्रेम का सावन अस  बरसे.
मेरा हिया-मयूर हर्षित होकर ,
तेरे प्रेम-मिलन का नृत्य करे.

मेरा तन-मॅन तुझ में डूब गया, इन बूँदियारी बरसतों में.
मैं छण-छण सदियाँ  जीता हू, तेरी गह -कजरारी आँखों  में....

मुझे प्रेम- पथिक तू अपनाले,
मैं प्रेम-रसिक बन जाऊंगा.
हिय  में रख कर तेरा स्नेह-शुभ्र,
तेरा अनुग्रही कहलाऊँगा .
मैं प्रीत में तेरी सध्  -सध्  कर,
सब प्रेम सुधा-रस पाउँगा.
हे प्रिय! मेरी तुम श्वास मेरी,
तुझे हर छण जीता जाऊँगा .

कल्पना में भी तुझ बिन जीवन, इन दुश्वारी झंझातों में.
मैं छण-छण सदियाँ  जीता हू, तेरी गह-कजरारी आँखों  में....


द्वारा - अविलाष
दिनाँक - १८-०६ -२०१६ 

5 comments:

  1. Replies
    1. Thankyou! Very Much :)

      That is what it was for ;-)

      Delete
  2. i have been looking for me .. ! :P bdw that blog or poem u were wrote and there meaning is really good , work done by you is immense.

    ReplyDelete
    Replies
    1. Kamal karte Ho Rathore Sahab....Thanku vermuch. :)

      Delete