Friday 5 January 2018

।। टुटा पत्ता - The broken Leaf ।।



है टूट गिरा आधार मेरा
सब छूट गया परिवार मेरा
अब सफ़र अकेला राह मेरी
तरु से टुटा व्यवहार मेरा।।


गिरते-उड़ते तरु शाखों से
आफ़त ने लिया है घेर मुझे
प्रतिघात हवा ने बरसाये
सब अपना साधे बैर मुझे
निर्बल सहता मैं वार सभी 
छूटा है अभी जो घर मेरा 
अब सफ़र अकेला राह मेरी
तरु से टुटा व्यवहार मेरा।। 


जो रश्मि मुझे मनभावन थी 
तरुघर के झरोखों से आती 
हर रोज मुझे छु करके जब 
मेरे गालों पे इठलाती 
छुपती वो कभी तो कभी-कभी 
एकदम से नेत्र नहा जाती 
स्मृत करके वो अठखेली 
मेरी आँखें भी झर जातीं 
उन धुप की किरणों ने हँसकर  
बरसा डाला अंगार निरा 
अब सफ़र अकेला राह मेरी
तरु से टुटा व्यवहार मेरा।।


कर शक्ति प्रदर्शन हवा मुझे 
नद्-दरिया में अब छोड़ गयी 
पर्वत-सम ऊँचे धार चढ़ा 
लहरें भी मेरा दम तोड़ गयीं 
खुद की ऐसी क्षति देख मुझे 
दुर्गति भी चिढ़ा मुँह मोड़ गयी 
एकलता का ऐसा मुझपर 
भरी-भरकम है पहाड़ गिरा 
अब सफ़र अकेला राह मेरी
तरु से टुटा व्यवहार मेरा।।


तरु से लिपटे मैंने कितने 
सावन की रिम-झिम खूब जिया 
बौछारों की मधुरिम वर्षा में 
तन-मन अपना भीग लिया 
तरु के विस्तृत आँगन में सब 
जीवन के अपने कृत्य किया 
छोटे कोंपल से पत्ते तक
सब सफ़र यहीं पर सिद्ध किया 
अब छोड़ चला जब इस घर को 
सब बैरी है संसार मेरा 
अब सफ़र अकेला राह मेरी

तरु से टुटा व्यवहार मेरा।।


द्वारा- अविलाष कुमार पाण्डेय 
दिनाँक- ०६. ०१. २०१८ 

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