Saturday 13 January 2018

।। प्रकृति की गोद में ।।

जा क्षितिज लगा है ये दिनकर
शीतल मन चन्दन छाँह बिछे
क्रोधित सृष्टि का ज्वलित ज्वार
कम हुआ नरम व्यवहार दिखे
ज्यों आत्मज के रूखेपन पे
माँ की ममता आभार दिखे
सबको आँचल में छुपा लिया
जो सहमा-सा सँसार दिखे।।

दिन बना कुम्हार अजा सबका
गढ़ता जीवन भरता सबमें
माटी के बने निर्जीवित हम
दे ठोंक-पीट गढ़ता हमने
दिन भर के कठिन परिश्रम में
जब दबा-दबा सँसार दिखे
रजनी का चादर ओढ़ा दिया
जो सहमा-सा सँसार दिखे।।

जननी औ जनक का भार लिये
वाहक सारा परिवार लिये
दिन भर हमपर बरते गरमी
हर रात्रि न्योछावर प्यार दिये
देती हमको दीक्षा सारी
हर सीख जिसे सत साल जियें
सर्वस्व उपस्थित सर्वभूत
सबपर अपनी है नेत्र किये
बल से परिपूर्ण बुद्धि विकसित
मनु के वंशज का मार्ग दिखे
पालक बनके सब जता दिया
जो सहमा-सा सँसार दिखे।।

मनु-रूपा के समागम से
मानवता बरसी इस वसुधा
सृष्टि ने उठाया गोद हमें
भर-पूर दिया सब सुख-सुविधा
जो उदर भरे फल-फूल दिया
जो देह ढके वो धूल दिया
जीजीविषता को तूल दिया
जो हर मौसम अनुकूल दिया
है आज दिया सब उसका ही
जो छत ऊपर विस्तार दिखे
सबको आँचल में छुपा लिया
जो सहमा-सा सँसार दिखे।।

जो आज साँझ को देख मुझे
सृष्टि की दया की बात मझी
दिनभर के कौतूहल से अलग
सुख रात्रि समां सौहार्द लगी
थककर जब रात ने लेप किया
आँखों की सकल तब प्यास बुझी
सपनों की सुन्दर घाटी में
मुझको अम्बर उजियार दिखे
सबको आँचल में छुपा लिया
जो सहमा-सा सँसार दिखे।।






















द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - १३. ०१. २०१८

No comments:

Post a Comment