आदी हूँ तेरे आकर्षण का, या प्रेम में तेरे डूबा हूँ,
दोनों बातों में अंतर क्या, यदि प्रेम मैं तुझसे करता हूँ।।
जीलूँ तुझको मैं जीवन भर,
औ रहूँ सदा आदि ही तेरा,
जो छूटे तुझसे प्रेम-लगन,
मन हो जाये प्रस्तर का मेरा।
है तुझको चुना बस जीवन में,
तेरा ही रहे अंतर ये मेरा,
मैं जियूँ सहस्त्र वरष तक यूँ ,
सदियों तक तुझसे रहूँ जुड़ा।
हिय-तरंग बहे मेरी तुझसे, आकर्षित ऐसे होता हूँ।
दोनों बातों में अंतर क्या, यदि प्रेम मैं तुझसे करता हूँ।।
आदी होने की लत जो लगी,
उसको कैसे मैं और कहूँ,
वो प्रेम में पनप गया तेरी,
उसे प्रेम-स्वरुप का शौर्य कहूँ।
ये लत ऐसे ना जाएगी,
मैं प्रीत-सरोवर में बहलूँ,
तेरे ह्रदय को मेरा ज्ञात लगे,
जो प्रीत मैं जीवन भर करलूँ।
तुम पास रहो या दूरी दो, मैं जीवन तुझको देता हूँ।
दूरी-समीप में अंतर क्या, यदि प्रेम मैं तुझसे करता हूँ।।
जग से दूरी कुछ बात नहीं,
तुझसे दूरी अभिशाप सी है,
जिता हूँ जीवन तुझ बिन जो,
जीवन मेरा उपहास ही है।
आशावादी इस मन में फिर,
तुझसे मिलने की मिठास सी है,
इस वेश जो ये हो न सका,
तो किसी और एहसास में है।
तू अपनाये या विछोह करे, मैं जीव समर्पित करता हूँ।
दोनों बातों में अंतर क्या, यदि प्रेम मैं तुझसे करता हूँ।।
द्वारा - अविलाष कुमार पाण्डेय
दिनाँक - ०६ /०८ /२०१६ {जीवन का एक महत्वपूर्ण दिवस :-)}
आदी-Addiction
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